लेखनी कहानी -14-Nov-2022# यादों के झरोखों से # मेरी यादों की सखी डायरी के साथ
प्रिय सखी।
कैसी हो।दो दिन तुम से नही मिल पाये उसके लिए क्षमा। दरअसल वही लेखिका पुराण।मतलब समझी नही तुम। हमारे पतिदेव को हमारा लिखना पसंद नही है । इसलिए हमारा फोन हमसे ले लिया कि तुम सारा दिन फोन मे घुसी रहती हो।अब कोई इनको बताएं कि चंदन को कितना डिबिया मे बंद कर लो वो अपनी महक बाहर बिखेरेगा ही।हम लेखन छोड़ दे।ये हो नही सकता।
बात दुर्गाष्टमी की है ।
सच मे जब ये दिन आता है और छोटी छोटी कंजके तैयार होकर माता रानी का रुप बनी एक घर से दूसरे घर जाती हे सचमुच मुझे मेरा बचपन याद आ जाता है।हम चार बहने थी।दो तो मुझ से बड़ी थी हम दो बहने हम उम्र थी।और एक मेरे ताऊजी की लड़की थी ।हम तीनों की उस दिन पूरी गली मे बहुत पूछ होती थी।पर मेरे दादा जी को ये पसंद नही था कि उनकी पोतियां ऐसे किसी के यहां कंजक जीमने जाए । शुरू से ही रहीसी देखी थी दादा जी ने।पर मेरे मम्मी पापा को कोई वहम नही था।सामने अगल बगल मे दो घर थे।एक पंजाबी परिवार था और एक पंडित परिवार।वे दोनों परिवारों मे हमें जब तक कंजक के रुप मे वे नही बैठाते थे तब तक उन्हें तसल्ली नही होती थी । पंजाबी परिवार में वे लोग कंजक दूध ,चावल और शक्कर से जीमाते थे। मुझे सुबह सुबह ये खाना नही रुचता था जब वो मेरू दादाजी के डर से चोरी चोरी हमे लेने आते तो या तो मै अंदर स्टोर रूम मे छुप जाती थी या मम्मी को झूठ बोलना पड़ता कि वो तो किसी के यहां गयी है।पर आज सोचती हूं काश मुझे भी कोई बेटी होती तो मै भी सभी जगह क़जक के रुप मे उसे ले जाती ।पर क्या करू बेटी है ही नही अब पेज खतम हो गया है अब अलविदा
Arina saif
03-Dec-2022 06:18 PM
Nice
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